आपके लिए पेश है सत्संगति का महत्व पर निबंध हिंदी में (satsangati ka mahatva essay in hindi) इस निबंध में सत्संगति का महत्व की काफी सारी जानकारी दी गयी है।

satsangati ka mahatva essay in hindi


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सत्संगति का महत्व निबंध हिंदी

प्रस्तावना : "सत्संगति" का अर्थ है-अच्छे लोगों की संगति, सज्जन व्यक्तियों का सम्पर्क तथा श्रेष्ठ व्यक्तियों का साथ। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और इसीलिए उसे मित्रों की आवश्यकता होती है। यह संगति जो उसे मिलती है, वह अच्छी भी हो सकती है और बुरी भी। अच्छी संगति पारस के समान है। जिस प्रकार पारस के छूने से लोहा भी सोना बन जाता है, उसी प्रकार सत्संगति के प्रभाव से दुष्ट व्यक्ति भी देवता समान बन जाता है, लेकिन यदि व्यक्ति को बुरी संगति मिलती है तो उसका जीवन नारकीय हो जाता है।

सत्संगति के सुप्रभाव : सत्संग की महिमा अनूठी है। व्यक्ति जैसी संगति में रहता है, वह वैसा ही बन जाता है। इसके कुछ ज्वलंत उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं-एक ही स्वाति बूंद केले के गर्भ में पड़कर कपूर बनती है, सीप में पड़ने पर मोती बन जाती है और साँप के मुंह में गिरने पर विष बन जाती है। इसी प्रकार पुष्प की सत्संगति में रहने से कीड़ा भी देवताओं पर चढ़ने योग्य हो जाता है। महर्षि वाल्मीकि रत्नाकर नाम के एक ब्राह्मण थे। भीलो की संगति में रहकर वह डाकू बन गया लेकिन जब वही डाकू देवर्षि नारद की संगति में आया तो तपस्वी बन गया और "महर्षि वाल्मीकि" नाम से "रामायण" की रचना कर डाली। गन्दे पानी का नाला भी पवित्र भागीरथी से मिलकर गंगाजल बन जाता है। लकड़ी के सम्पर्क में आने पर लोहा भी पानी में तैरने लगता है। इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है, जब सत्संगति ने अपने अच्छे परिणाम दिखाए हैं और कुसंगति ने दुष्परिणाम । सत्संगति हमारी अज्ञानता को दूरकर वाणी को सत्य तथा पवित्र बनाती है, यह पाप को दूर करती है तथा पवित्रता प्रदान करती है। 

विद्यार्थी जीवन में सत्संगति का महत्व : विद्यार्थी काल बहुत नाजुक दौर होता है। इस समय बालमन चंचल होता है इसलिए वह अच्छे बुरे का भेद नहीं जानता। हर विद्यार्थी को चाहिए कि वह निष्ठावान, प्रतिभाशाली सच्चे तथा अच्छे विद्यार्थी से ही मित्रता करें और झूठ बोलने वाले, समय पर कार्य न करने वाले, धूम्रपान करने वाले लड़कों से मित्रता न करें। एक बार कुसंगति में पड़ जाने पर उससे बाहर आना बहुत मुश्किल होता है। परिश्रमी बने तथा परिश्रमी व्यक्ति को ही अपना मित्र बनाएँ। इससे भावी जीवन में बहुत सहायता मिलेगी।

कुसंगति के कुप्रभाव : उन्‍नतिशील व्यक्ति को अपने चारों ओर के समाज तथा व्यक्तियों के साथ बहुत सोच-समझकर मित्रता स्थापित करनी चाहिए क्योंकि मनुष्य का मन जल जैसा स्वभाव वाला होता है। दोनों बहुत तेजी से नीचे गिरते हैं, लेकिन ऊपर उठाने में बहुत मेहनत करनी पड़ती है। कुसंगति काम, क्रोध, मद, मोह, ईर्ष्या, वैर-भाव पैदा करने वाली होती है। बुरे व्यक्ति की समाज में कोई इज्ज़त नहीं होती इसलिए कुसंगति को त्यागकर सत्संगति को अपनाना चाहिए।

उपसंहार : अतः उन्नति की एकमात्र सीढ़ी सत्संगति है। किसी कवि ने ठीक ही कहा है-- "जैसी संगति बैठिए, तैसो ही फल दीन ।" अर्थात्‌ इंसान जैसी संगति में बैठता है, वह भी वैसा ही बन जाता है। सत्संगति की राह पर चलकर ही हमारे जीवन की नैया भवसागर से पार जा सकती है।

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