आपके लिए पेश है एक पुस्तक की आत्मकथा निबंध हिंदी में (pustak ki atmakatha essay in hindi) इस निबंध में एक पुस्तक की आत्मकथा के बारे में काफी सारी बाते लिखी गई है।
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पुस्तक की आत्मकथा निबंध हिंदी
प्रस्तावना : मैं पुस्तक, छोटे-बड़े, आदमी, औरत सभी की सच्ची साथिन एवं सच्ची मार्ग दर्शिका हूँ। मैं तो सभी के काम आती हूँ। छोटे-छोटे बच्चे मेरी रंग-बिरंगी तस्वीरें देखकर बहुत प्रसन्न होते हैं। मैं उनका मनोरंजन भी करती हूँ, साथ ही शिक्षा भी देती हूँ। जीवन की सच्ची सफलता मुझे पढ़कर ही प्राप्त की जाती है अर्थात् मैं ही तो जीवन-सफलता की कुँजी हूँ।
अनेक रूप : मेरे अनगिनत रूप है तथा कोई भी मेरी सारी प्रतियाँ नहीं पढ़ सकता है । यदि हिन्दुओं के लिए मैं "रामायण", "गीता" या "महाभारत" हूँ, मुसलमानों के लिए मैं “कुरान-ए-शरीफ” हूँ। यदि ईसाई, मुझे "बाईबल" मानते हैं तो सिख “गुरुग्रन्थ साहिब” समझकर मुझे पढ़ते हैं तथा मेरी बताई शिक्षाओं पर अमल करते हैं। इन विभिन्न रूपों के कारण मेरे अनेक नाम भी हैं। पुस्तकालय में कोई भी मेरे भिन्न-भिन्न रूपों के दर्शन कर सकता है। जिस प्रकार मानव समाज में अनेक जातियाँ हैं, उसी प्रकार मेरी भी कई जातियाँ हैं। कहानी, नाटक, उपन्यास, कविता, आलोचना, निबन्ध आदि अनेक जातियाँ है तथा मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, ज्ञान-विज्ञान शिक्षा आदि मेरे ही अनेक रूप है। अब यह तो पाठक की रुचि पर निर्भर करता है कि उसे मेरा कौन सा रूप सबसे अधिक पसन्द आता है।
मेरा जन्म : मेरा विकास एवं उन्नति बालक की ही भाँति धीरे-धीरे हुआ है। आज वर्तमान युग में मेरा जो रूप आप देखते हैं, प्राचीनकाल में मैं उससे बिल्कुल भिन्न थी। प्राचीन काल में न तो कागज का आविष्कार हुआ था और न ही छपाई का। तब शिक्षा का रूप ऐसा नहीं था। तब गुरु अपने शिष्य को मौखिक ज्ञान देंते था और शिष्य भी अपने गुरु के सुवचनों को कंठस्थ कर अपने जीवन में उतार लेता था। इसके पश्चात् 'भोजपत्रों' का प्रयोग होने लगा तथा लिखाई का कार्य भी भोजपत्रों पर ही होने लगा। मेरा यह रूप सर्वप्रथम चीन में विकसित हुआ था।
कागज का आविष्कार : आज तो कागज का आविष्कार हो चुका है। यह कागज बाँस, फूँस, लकड़ी, आदि से बनाया जाता है। मुझे छापने के लिए मुद्रण-यन्त्रों का भी प्रयोग होने लगा है । छपाई के बाद मुझे एक पुस्तक के रूप में एक साथ बाँध दिया जाता है और फिर मैं एक पुस्तक के रूप में आपके समक्ष आ जाती हूँ।
मेरे लाभ : प्रकृति की भाँति मैं भी मानवहित के लिए ही जीती हूँ। मेरा अध्ययन करने से ज्ञान-वृद्धि होती है, नई-नई जानकारियाँ प्राप्त होती हैं तथा पाठक का मनोरंजन भी होता है। निराश व्यक्ति में मैं आशा का संचार करती हूँ तो आशावान के लिए नई स्फूर्ति लेकर आती हूँ। मैं थके हुए व्यक्ति को सहारा देती हूँ, तो असहाय का सहारा हूँ। पथश्रष्ट व्यक्ति को मैं सही मार्ग दिखाती हूँ तथा सही मार्ग पर चलने वाले को आगे भी सही राह पर ही चलने का उपदेश देती हूँ। आप जब चाहे, मेरी सेवाएँ प्राप्त कर सकते हैं, मेरी यह गारन्टी है कि मैं दो मिनट में ही आपकी थकान मिटा सकती हूँ। मुझे पढ़कर आप अपने समय का सदुपयोग कर सकते हैं क्योंकि मैं तो ज्ञान का भंडार हूँ। दुनिया के बड़े-बड़े महापुरुष, वैज्ञानिक, ज्योतिष सभी मुझे पढ़कर ही इतना ऊपर पहुँचे हैं। दुनिया में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसने मुझे पढ़े बिना ज्ञान की पराकाष्ठा को छू लिया हो।
उपसंहार : मैंने यह आदरणीय स्थान अनेक दुख सहने के पश्चात् प्राप्त किया है। जो मेरा सम्मान करते हैं मैं भी उनका ज्ञानवर्धन करती हूँ लेकिन जो मुझे इधर-उधर फेंककर मेरी बेइज्जती करते हैं, मेरे पेपर फाड़ते हैं, पैरों से छूते हैं, मैं भी उनसे दूर ही रहती हूँ क्योंकि मुझे भी अपनी इज्जत बहुत प्यारी है। अर्थात् मेरे सदुपयोग से ही निरक्षर व्यक्ति विद्वान बन जाता है और मूर्ख समझदार बन जाता है। जो व्यक्ति मेरा सम्मान करना नहीं जानता, वह जिन्दगी भर अपने भाग्य को ही कोसता रहता है। मैं तो माँ सरस्वती की पुत्री हूँ, इसलिए बस आप मेरा सम्मान करते रहो और मुझे पढ़ते रहो, मैं भी आपके रोम-रोम में बस जाऊँगी।
पुस्तक की आत्मकथा निबंध हिंदी PDF
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