आपके लिए पेश है परोपकार की महिमा पर निबंध हिंदी में (paropkar ki mahima nibandh in hindi) इस निबंध में परोपकार की महिमा की काफी सारी जानकारी दी गयी है।

paropkar ki mahima essay in hindi

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परोपकार की महिमा निबंध हिंदी

प्रस्तावना : परोपकार दो शब्दों पर + उपकार के मेल से बना है, जिसका अर्थ है "दूसरों का हित" अपने व्यक्तिगत हित की परवाह किए बिना दूसरों की भलाई के लिए कार्य करना ही परोपकार है। परोपकार के लिए त्याग की भावना का होना बहुत आवश्यक है। परोपकार की महिमा का गुणगान तुलसीदास ने भी किया है-

'रहित सरसर धर्म नहि थाई ।
पर पीडा श्रम नहिं अधमाई ।'

अर्थात्‌ - दूसरों का उपकार करने से बड़ा कोई धर्म नहीं है तथा दूसरों पीड़ा देने से बढ़कर कोई पाप नहीं है।

प्रकृति तथा परोपकार : परोपकार की सच्ची शिक्षा हमें प्रकृति से ही मित्नती है। प्रकृति तो केवल परोपकार ही करना जानती है। वृक्ष अपने फलों को स्वयं नहीं खाते, फूल अपनी सुगंध स्वयं नहीं ग्रहण करते। नदियाँ दूसरों की प्यास बुझाती है। सूर्य, चन्द्रमा, तारे सब निमित्त समय पर निकल आते हैं, धरती सबका बोझ चुपचाप सहती है, वृक्ष अपनी छाया थके पथिक को निःस्वार्थ भाव से देते हैं। ठीक इसी प्रकार महापुरुषों का पूरा जीवन परोपकार करने में ही व्यतीत हो जाता है।

परोपकार कैसे किया जाए : प्रकृति की ही तरह हम सब भी परोपकार कर सकते हैं। भूखे को रोटी खिलाकर, प्यासे को पानी पिलाकर, किसी बुजुर्ग को सड़क पार कराकर, किसे भूले-भटके को सही राह दिखाकर, किसी रोगी को अस्पताल पहुँचाकर, कुए खुदवाकर, अशिक्षितों को शिक्षा देकर, बच्चों को खिलौने देकर, अबलाओं तथा पीड़िताओं की सहायता करके हम परोपकार ही कर रहे होते हैं। यदि हमारे पास धन की बहुतायत है तो निर्धनों तथा जरुरतमंदों में धन बाँटकर और यदि धन की कमी है तो अपने तन और मन से उनकी सहायता करके परोपकार कर सकते हैं।

परोपकार के उदाहरण : हमारे इतिहास में परोपकारी व्यक्तियों के अनेक उदाहरण हैं। महर्षि दधीचि ने देवताओं की रक्षा के लिए अपनी अस्थियों को भी दान में दे दिया था। राजा शिवि ने एक घायल कबूतर के प्राणों की रक्षा के लिए भूखे बाज को अपने शरीर का माँस काटकर दे दिया था। महान दानवीर कर्ण ने खुशी-खुशी अपने कवच और कुंडल सुरपति को दान कर दिए थे।

परोपकार की महत्ता : परोपकार की महिमा अवर्णनीय है। परोपकार करने से हमें आत्मिक तथा मानसिक शान्ति मिलती है। परोपकारी कार्य करने से हमें यश की प्राप्ति तो होती ही है, साथ-साथ हम जन-जन के हृदय में श्रद्धा के पात्र बन जाते हैं। हर इंसान की पहचान उसके कार्यों से ही होती है। अपने लिए तो सभी जीते हैं, लेकिन सच्चा जीवन तो वही जीता है जो दूसरों के काम आता है। अपने परोपकारी कार्यो के द्वारा ही मानव समाज तथा राष्ट्र दोनों ऊपर उठ सकता है। दानवीर कर्ण, महावीर, गौतम बुद्ध, रामचन्द्रजी, महात्मा गाँधी, दयानन्द सरस्वती, गुरुनानक, मंदर टेरेसा, विनोवा भावे ऐसे ही व्यक्ति थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन दूसरों की भलाई में लगा दिया था।

उपसंहार : समय तथा पात्र को ध्यान में रखकर किया गया परोपकार सबसे बड़ी सम्पत्ति है। जिस प्रकार मेंहदी बाँटने वाले व्यक्ति के स्वयं के हाथ भी लाल हो जाते हैं, उसी प्रकार दूसरों का परोषकार करते-करते इंसान अपना भी परोपकार कर लेता है, अर्थात्‌ उसका परलोक सुधर जाता है। अत्तः प्रत्येक व्यक्ति को परोपकारी कार्य अपना कर्त्तव्य समझकर पूरी निष्ठा से करने चाहिए, किसी निजी स्वार्थ के वशीभूत होकर किया गया परोपकार किसी काम का नहीं होता है।

परोपकार की महिमा निबंध हिंदी PDF

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