आपके लिए पेश है नदी की आत्मकथा निबंध हिंदी में (nadi ki atmakatha nibandh) इस निबंध में नदी की आत्मकथा के बारे में काफी सारी बाते लिखी गई है।
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नदी की आत्मकथा निबंध हिंदी
भूमिका : मेरा नाम नदी है, मैं जहाँ से भी गुजर जाती हूँ, वहाँ की धरती, पशु-पक्षी, खेल-खलिहानों आदि सब की प्यास-बुझा देती हूँ। मेरे आगमन से उनकी प्यास बुझ जाती है और वे फिर से हरे-भरे हो जाते हैं। समय-समय पर मेरे अनेक नाम पड़ गए हैं। नदी, नहर, तटिनी, सरिता, क्षिप्रा आदि मेरे ही नाम हैं। मैं तेज प्रवाह से बहती हूँ, इसीलिए लोग मुझे प्रवाहिनी कहते हैं और बहते समय मैं "सर-सर" की ध्वनि करती हूँ, इसलिए लोग मुझे सरिता कहते हैं।
उद्गम तथा विकास : मेरा जन्म पर्वतमालाओं की गोद से हुआ है। बचपन से ही मैं चंचल प्रवृत्ति की थी, तभी तो मैं एक स्थान पर टिक ही नहीं सकती तथा मैं बहती ही रहती हूँ। जब मैं गति से आगे बढ़ती हूँ तो रास्ते में पड़े पत्थर, पेड़-पौधे, वनस्पतियाँ इत्यादि भी मुझे नहीं रोक पाते। अनेक बार तो बड़े-बड़े शिलाखण्ड आकर मेरा रास्ता रोकने की कोशिश करते हैं लेकिन मैं पूरी शक्ति लगाकर उन्हें पार करती हुई आगे बढ़ जाती हूँ। जहाँ-जहाँ से मैं गुजरी मेरे किनारों को तट का नाम दे दिया गया। मैदानी इलाकों में मेरे तटों में आस-पास छोटी-बड़ी अनेक बस्तियाँ स्थापित होती गई। मेरे जल से सिंचाई कार्य होने लगा तथा प्यासे जीव-जन्तुओं की प्यास बुझने लगी। लोगों ने अपनी आवश्यकतानुसार मेरे ऊपर पुल भी बना लिए हैं।
खुशहाली का कारण : मैं देश की खुशहाली के लिए सदैव अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार रहती हूँ। मेरे पानी को बिजली पैदा करने के लिए काम में लाया गया और बिजली से अनेक उपकरण चलाए जाते हैं। मैं सभी के इतने काम आती हूँ लेकिन अहंकार मुझे छू तक भी नहीं गया है। मैं तो प्रसन्नता का अन्भव करती हूँ जब मेरा अंग-अंग समाज के हित में लगता है। पूरी धरती ही मेरा परिवार है, मैं तो ऐसा ही हूँ।
सागर से मिलन : लेकिन मैं भी तो थक जाती हूँ। इसलिए अब मैं अपने प्रिय सागर से मिलकर उसमें अपने आप को समाने जा रही हूँ। मैंने इस लम्बी यात्रा के बीच में अनेक घटनाएँ घटती देखती हैं। मेरे ऊपर बने पुलों में से सैनिकों की टोलियाँ, राजनेताओं, डाकुओं, साधु-महात्माओं, राजा-महाराजाओं आदि को गुजरते हुए देखा है। मैंने तो कितनी ही बस्तियाँ बसते और उजड़ते हुए देखी है। यही तो है मेरी सुख-दुख से भरी आत्मकथा।
उपसंहार : मैं तो अपना पूरा जीवन मानव-सेवा के लिए अर्पित कर चुकी हूँ, लेकिन मुझे दुख तब होता है, जब लोग मुझे प्रदूषित कर देते हैं। कूड़ा-कचरा मेरे अन्दर डालकर लोग मुझे गंदा करते हैं। फिर भी मैं अपने लक्ष्य से कभी नहीं भटकूँगी और सदा मानव सेवा में बहती रहूँगी।
नदी की आत्मकथा निबंध हिंदी PDF
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एक सैनिक की आत्मकथा निबंध हिंदी
Excellent essay
ReplyDeleteसोहम्ं
ReplyDeleteसोहम्ं
ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteGood
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